गुरुवार, 13 अगस्त 2020

कवि, एक चित्रकार

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 एक प्रेमिका द्वारा अपने प्रेमी कवि से अपना चित्र बनाने की जिद करने पर , प्रेमी कवि का प्रत्युत्तर  .........


 On the insistence of a girlfriend to make her portrait with her lover poet, the lover poet responds ………

बुधवार, 3 जून 2020

जब मैं चुनौतियों से घिरा पता हूँ


 "  कोरोना काल  बनाम मानव"

जब मैं चुनौतियों से घिरा पता हूँ
तो संभावनाएं अपार पाता हूँ ।
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।

क़ुदरत ताक़तवर हैं , मैं यह जानता हूँ
लेकिन खुद को मज़बूत पाता हूँ ।
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।

मेरा अंत नियत हैं, मैं यह जानता हूँ
लेकिन मेरा अंश छोड़ना चाहता हूँ ।
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।

किस्मत बनाना ,बिगाड़ना, बिगाड़ कर सुधारना जानता हूँ
मिट्टी से सोना, मिट्टी से मिट्टी निकालना जानता हूँ ।
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।

जमीं में दबे वो सबूत जानते हैं
कल था ,आज हूँ , कल भी रहूँगा ।
ऐ कर्ज़दार   .......
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।


                                   सुरेंद्र सिंह 'कर्ज़दार'
                  Ssmeena.shyamota24@gmail.com
                         Maybekavita.blogspot.com


मंगलवार, 5 मई 2020

ख़िलेगा चमन में एक दिन ग़ुलाब फिर से ...



ख़िलेगा चमन में एक दिन  ग़ुलाब फिर से
चमन में मायूसी , मातम सी हैं फिर क्यूँ

तू आज अकेला है, कल कारवाँ होगा साथ तेरे
तेरे  महल में , ये मातम है फिर क्यूँ

इंसा तू मिट्टी का , मिट्टी में मिलने से डरता हैं ?
रगों में तेरे लावा ,  ये मातम है फिर क्यूँ

जंगे लड़ी , अपने खोये , लेकिन जंगे जीती  है तूने
मौत का बहाना , दूसरा हैं , ये मातम है फिर क्यूँ
 
ख़िलेगा चमन में एक दिन  ग़ुलाब फिर से
चमन में मायूसी , मातम सी हैं फिर क्यूँ

 
                         Dated 5th May 2020
                            Surendra Singh
            Ssmeena.shyamota24@gmail.com
                   Maybekavita.blogspot.com

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

जिस क़िताब से नक़ल कर रहा था

जिस क़िताब से नक़ल कर रहा था
ऐ जिंदगी , वो क़िताब तू थी
पन्ने यूंँ ख़त्म हो जायेंगे
कलम यूँ जवाब दे जाएगी

अगर ये सब तय था तो
कुछ खाली पन्ने बीच में दे देती
मैं  थक बहुत गया था
थोड़ा आराम कर लेता

क्यूँ  मुझें बहकावें  में रखा
मैं इंसा माटी का ...
माटी में ही मिल जाना  है
शायद अब तुझे शिकायत न होगी

ऐ जिंदगी  तेरा किरदार निभा ..
तेरी नक़ल पूरी किये जा रहा हूँ  

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

गु़मनामी


तेरे  दोस्तों में तो  ...
तू कब का ग़ुमनाम हो गया

 अच्छा हुआ,  ऐ  कर्ज़दार
जो तेरे दुश्मन मुक्क़मल निकले
तुझे तेरी वीरान दुनियां में भी
     मशहूर रखा

अच्छा हुआ , ऐ कर्ज़दार
जो तेरे दुश्मन ही तेरे  कातिल निकले
मुर्दाघर ही सही , कुछ  दिन
दिल ओ  दिमाग को ठंडक  जो मिली

बुरा बस इतना हुआ,
 ऐ  कर्ज़दार
इस ठंडक से जैम गए जो आँसू
बह कर लबों तक न आ सके

एक आख़री मौका था
शायद ये ग़ुमनामी मिट जाती ...

रविवार, 26 अप्रैल 2020

कबूतर

#covid 19 worldwide pandemic 
#effects_on_cities

तंग गलियाँ

इन तंग गलियों से ......
साइकिल हमारी भी निकल ही जाती
अगर मज़हब के रोड़े न होते
तो कहानी हमारी भी
कुछ और  ही होती
ए कर्ज़दार ....
अगर तू पंछी होता
न ये गालियाँ होती
न ये रोड़े होते
उड़ता अनंत गगन में जाता
कोई, न तुझको रोक पाता
फिर चाहे,
मुहब्बत तुझे ठुकरा दे
 किसी को दोष न देता
न गम इस बात का होता
की गालियाँ तंग थी उनकी