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कोरोना काल बनाम मानव"
जब मैं चुनौतियों से घिरा पता हूँ
तो संभावनाएं अपार पाता हूँ ।
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।
क़ुदरत ताक़तवर हैं , मैं यह जानता हूँ
लेकिन खुद को मज़बूत पाता हूँ ।
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।
मेरा अंत नियत हैं, मैं यह जानता हूँ
लेकिन मेरा अंश छोड़ना चाहता हूँ ।
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।
किस्मत बनाना ,बिगाड़ना, बिगाड़ कर सुधारना जानता हूँ
मिट्टी से सोना, मिट्टी से मिट्टी निकालना जानता हूँ ।
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।
जमीं में दबे वो सबूत जानते हैं
कल था ,आज हूँ , कल भी रहूँगा ।
ऐ कर्ज़दार .......
इंसान हूँ , जीना चाहता हूँ
ज़ीने को रास्तें हज़ार पाता हूँ ।।
सुरेंद्र सिंह 'कर्ज़दार'
Ssmeena.shyamota24@gmail.com
Maybekavita.blogspot.com